aayu banee prastavana
प्रिय! सरकता जा रहा है हाथ से आँचल तुम्हारा
हाय। ये जल के थपेड़े रुक तनिक पाते!
प्राण के लघु दीप पग-पग पर बुझे जाते
मैं जिधर मुँह मोड़ता हूँ, मोड़ता है मुँह किनारा
उचित इस टूटी तरी को छोड़ देना ही
सूत्र के जलते सिरे को तोड़ देना ही
कब उपल के बाहु-पाशों में रुकी चिर-काल धारा!
एक मीठी याद, खारा अश्रु मेरा एक ही
भूल यौवन की, प्रिये! मैं, ज्ञान था न विवेक ही
एक भावुक स्वप्न, पिछली रात जो तुमने निहारा
प्रिय! सरकता जा रहा है हाथ से आँचल तुम्हारा
1965