aayu banee prastavana
यह इतिहास अनंत एक लघु क्षण में ले लो
मेरे जीवन को अपने चुंबन में ले लो
बिखर न जायें ये स्मृतियाँ उर बीच समेटो
आज शेष की रात, प्राण प्राणों से भेंटो
नहीं बिदा की वेला है यह अमर मिलन की
दो हृदयों की कसक, देह की दूरी मेटो
कुसुमों से ही नहीं अनल-कुसुमों से खेलो
यह आमूल वसंत एक गुंजन में ले लो
झंझा का आवर्त एक तृण-मध्य समाया
एक बूँद में सिमट सिंधु का कण-कण आया
एक साँस में स्नेहाकुल भू-नभ लहराया
एक निमिष ने सृष्टि-प्रलय का भेद मिटाया
एक दृष्टि में, प्रिये! निखिल मन-प्राण उंड़ेलो
यह आक्षितिज दिगंत एक स्पंदन में ले लो
मनुहारों का क्षण कोई मनुहार न छूटे
उपहारों का क्षण कोई उपहार न छूटे
कभी आज की रजनी का श्रृंगार न छूटे
छूट जाय संसार किंतु यह प्यार न छूटे
घेर मुझे ओ बाँहों के मणिधर अलबेलो!
यह चेतन द्युतिवंत एक दंशन में ले लो
1971