usar ka phool
अब मेरी पीड़ा से खेलो
मैं ले लूँ चाँदनी तुम्हारी तुम मेरी चेतनता ले लो
फूल-फूल में गंध जगी है
लहर-लहर अलसित अँगड़ायी
इतनी कितनी मादकता ले
तुम मेरे जीवन में आयी!
मलयानिल-से अंगोंवाली ! अब यह झंझानिल भी झेलो
गोरे भुजमूलों में, कितनी
भूलों का इतिहास छिपा है!
नयनों के कोनों में कितनी
सुधियों का उच्छवास छिपा है!
निज निजत्व अनबींधा पर तुम आज बदल मेरे “मैं’ से लो
मुझे नहीं चिता अतीत की
और भविष्यत् किसने देखा!
वर्तमान ही आज तुम्हारा
मेरे सुख की सीमा-रेखा
कब से प्यासे अधर सिसकते, निज अधरों की ओट इन्हें लो
अब मेरी पीड़ी से खेलों
1943