tujhe paya apne ko kho kar
सागर-संगम वेला
धीरे धीरे थमता जाता है लहरों का रेला
शांत गगन है, स्तब्ध समीरन
तिमिर बढ़ा आता है क्षण क्षण
तट पर मैं बैठ हूँ उन्मन
देख उखड़ता मेला
सागर तल से ध्वनि सी आती
गत जीवन की स्मृति तड़पाती
उस तट की न झलक मिल पाती
जाना जहाँ अकेला
मुझे क्षितिज के शून्य देश में
बुला रहे अब दिवस-शेष में
वे गुरुजन, मैं बाल-वेश में
जिनके सम्मुख खेला
सागर-संगम वेला
धीरे धीरे थमता जाता है लहरों का रेला