tujhe paya apne ko kho kar
साक्षी मेरी मर्म व्यथा के
तूने ही तो कागज़ पर ये शब्दचित्र हैं आँके
चमक रहे जो वर्ण-वर्ण अब
क्या ये तम में लय होंगे सब
या युग-युग तक, मैं न रहूँ जब
जग झूमेगा गाके
पूरा साज नहीं बन पाये
विश्व भले न इन्हें अपनाये
मुझको तो ये रहे लुभाये
हों भी तिरछे-बाँके
भग्न-तार, तूँबी भी फूटे
किन्तु कलम का मोह न छूटे
करना दया कि रंग अनूठे
पाऊँ फिर से आके
साक्षी मेरी मर्म व्यथा के
तूने ही तो कागज़ पर ये शब्दचित्र हैं आँके