prit na kariyo koi
पाँचवाँ सर्ग
कहूँ किस तरह और आगे का हाल!
अब उस बात को हो चुके तीस साल
कभी एक दिन भी न ऐसा गया
उठा हो न वह दर्द बनकर नया
जो सपने के जैसी मिली थी मुझे
गयी छोड़ वह उर्वशी थी मुझे
हुई फिर न उससे मुलाक़ात थी
वही प्यार की आख़िरी रात थी
मुझे झेलना जो पड़ा उसके बाद
तड़पता है दिल उसकी आते ही याद
सभी उसकी ख़ुशियों का सामान कर
ये सोचा, करूँ आगरे का सफ़र
तभी एक ख़त आ गया डाक से
“बहन की कहूँ बात क्याक आप से!
कलम रुक रही, दिल लहू से है तर
नहीं सूझता, किस तरह दूँ ख़बर
दगा दे गयी उसकी मेले की सैर
न जाने ये कब का निकाला है बैर
थी जमना नहाने को कहकर गयी
न आयी मगर लौटकर वह कभी
मुझे उसकी चादर के नीचे ढँका
मिला था जो ख़त आपके नाम का
मैं टूटा हुआ दिल भी अपना लपेट
उसे आपको आज करता हूँ भेंट
“चढ़ा मुझ पे तो उम्र भर को ये ताप,
न जाने इसे कैसे झेलेंगे आप
‘जो ख़त ख़ून के आँसुओं से लिपा
रहा सबकी नज़रों से अब तक छिपा
छिड़ककर कलेजे का अपने लहू
मैं रखता हूँ अब आपके रूबरू’–
“समझ में न आता है, कैसे लिखूँ
तुम्हें प्यार का कौन-सा नाम दूँ
कहूँ “मेरे सरताज” या “’प्राणनाथ”!
लिखूँ जो भी मैं, काँप जाता है हाथ
‘मेरा, आख़िरी वक्त का लो सलाम
मुझे दुख है, आयी तुम्हारे न काम
मेरे होके भी गैर के अब रहो
जियो, दिल की मस्ती कभी कम न हो
“बहुत ख़ुद को करती हूँ तैयार मैं
मगर हार जाती हूँ हर बार मैं
मिला प्यार था जो तुम्हारा मुझे
न हो छोड़ना भी गवारा मुझे
मगर कोई कहता है ज्यों कान में
“न तलवार बन दूसरी म्यान में
खिले फूल दो प्यार के हैं जहाँ
न रह बीच में बनके काँटा वहाँ
जिसे देखकर सब नज़र फेर लें
बने एक पैबंद क्योंी चाँद में!
बने क्योंर किसीके लिए सौत तू!
बहुत इससे अच्छी समझ मौत तू
मचलते हुए अपने दिल को सँभाल
नयी एक दुनिया में रख दे मिसाल,
‘“मिटा ख़ुद को दे प्यार के नाम पर
दुखे दिल न कोई, वही काम कर
न मरने से है प्यार को कोई डर
ये मर-मरके होता रहा है अमर
जिये अपने हक़ में अगर, क्या जिये!
है यह ज़िंदगी दूसरों के लिए”
‘जो सुनती हूँ हर वक्त आवाज़ मैं
नहीं टाल सकती उसे आज मैं
बची अब नहीं और तदवीर है
दवा मौत ही मेरी अक्सीर है
मिटा देगी दम भर में वह सारे रोग
भला या बुरा फिर कहें जो भी लोग
‘जिसे मौत कहते हैं, क्या वह नहीं
निकल बस यहाँ से है जाना वहीं
जहाँ मेरी माँ अपनी बाँहें बढ़ा
खड़ी है कि ले गोद में झट उठा!
खिलौनों से वह आज ललचा रही
मुझे फिर है बचपन की याद आ रही
‘बिठा तो गये तुम मुझे चाँद पर
नहीं मैं तुम्हारे थी क़ाबिल, मगर
बहुत मैं थी कमसिन भी, नादान भी
ज़माने की चालों से अनजान भी
मेरी बेबसी पर भी करना रहम
न चल पायी तुमसे मिला जो क़दम
“हुआ साथ भी था जो अपना कभी
समझना कि देखा था सपना कभी
न होना दुखी मेरे जाने के बाद
मिटा देना हरदम को अब मेरी याद
मेरी मौत का कुछ भी करना न ग़म
न रोना, तुम्हें मेरे सर की कसम
‘ये माना कि होगा जिगर टूक-टूक
कलेजे में फिर-फिर उठेगी भी हूक
बहुत है मगर, हाय! दुनिया हसीन
न ले प्यार यह दिल की ख़ुशियों को छीन !
‘कभी प्यार में दिन बिताये थे चार
मैं जाती हूँ दिल में लिये वह ख़ुमार
डराती हो कितनी भी आगे की राह
धरी मैंने, पर, जिस सहेली की बाँह
लगा अपनी छाती से, आँखों को मूँद
पिला देगी वह मुझको अमरित की बूँद
वो चूनर मेरी धोके कर देगी साफ़
गुनाहों को भी कुल करा देगी माफ़
‘रही टेर जमना है डोली लिये
चली मैं पगों में महावर दिये
जुड़ा जमदुतीया का मेला है आज
नहा-धोके, सिर गूँथ, आँखों को आँज
मैं दुलहन बनूँगी तुम्हारी, पिया!
निभाऊँगी वादा जो तुमसे किया
सजा अपने जूड़े में फूलों का हार
करूँगी वहाँ सेज पर इंतज़ार
“चली तो मगर दिल भी है बेक़रार
तुम्हें देख लूँ फिर से ज्यों एक बार
वे रातें रहीं अब निगाहों में घूम
मेरी तान सुन-सुनके उठते थे झूम
दबे पाँवों आ, मुझको बाँहों में दाब
मेरे हाथ से छीन लेते किताब
“मेरी बेकली आँखों-आँखों में ताड़
वो हमजोलियों की हँसी, छेड़छाड़
छिपा उनसे, दे सिर में सिंदूर भी
मुझे लेके बाज़ार जाना कभी
वे यादें नहीं भूल पाती हूँ मैं
उदासी में भी मुस्कुराती हूँ मैं
उढ़ा अपना आँचल तो प्यारा मुझे
सुला लेगी जमना की धारा तुझे
बहुत, हाय! नाजुक मिला मन तुम्हें
करेंगी न वे तंग, साजन! तुम्हें!
‘भले ही हुआ ख़त्म यह एक दौर
अभी जन्म कितने ही होंगे भी और
मिटेंगे ये दुनिया के झगड़े सभी
अकेली ही पाऊँगी तुमको कभी
बुलाते हैं उठ-उठके लहरों के हाथ
बिदा दो, कभी फिर निभाऊँगी साथ
“चली मैं लिये ग़म भी अपने, बिदा
बिदा, मेरी आँखों के सपने! बिदा
बिदा, मेरे सरताज! मेरे हुजूर!
मेरे दिल के मालिक! इन आँखों के नूर!
बिदा मेरी दुनिया के साहब, इमाम!
बिदा, झुकके करती हूँ फिर-फिर सलाम
“कभी सैर को आओ जो ताज की
दुआ माँगना अपनी मुमताज की
कुछ ऐसा भी करना कि जाने के बाद
जमाने को हरदम रहे मेरी याद
नहीं जो मिला अपने दम से मुझे
मिले वह तुम्हारी क़लम से मुझे
मेरी हर ख़ुशी अब बहन के है नाम
उसे भी मेरा आख़िरी राम-राम’
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‘यही प्यार की थी कहानी मेरी
सुना तुमने जिसको ज़बानी मेरी
कहूँ किस तरह का नशा वह रहा
दिया जिसने दुख अनदिखा, अनकहा
कशिश प्यार की मिट न पायी कभी
बढ़ी उम्र के साथ वह और भी
दिया था जिसे दिल के तलघर में दाब
नशीली हुई और भी वह शराब
‘कटी साथ उसके जो रातें कभी
खिँची दिल के परदे पे हैं आज भी
कभी प्यार लेना निगाहों से भाँप
कभी बात चलने की, सुनते ही, काँप
पलटकर छिपा लेना आँसू की बूँद
हथेली से देना मेरे होँठ मूँद
कभी मुँह पे घिरना उदासी का रंग
कभी छेड़कर मुस्कुराने का ढंग
वे दिलकश अदायें, हँसी, कहकहे
मुझे आज तक भी हैं तड़पा रहे
‘करूँ जोग-जप लाख गीता पढूँ
हिमालय की चोटी पे भी जा चढ़ूँ
नहीं इससे बचने का कोई उपाय
ये वह दर्द है, जान लेकर ही जाय
‘मगर मैंने इस ग़म के दरिया में डूब
निकाले हैं अनमोल मोती भी ख़ूब
भले ही थी यह चोट गहरी लगी
अधूरी थी इसके बिना ज़िंदगी’