geet ratnavali
रला! अब न रुकूँगा घर में
सुनकर तेरे वचन काम-ज्वर उतर गया पल भर में
जगा हुआ न पुनः सोऊँगा
हीरा पाकर क्यों खोऊँगा!
मन के कुल कल्मष धोऊँगा
नहा भक्ति-सागर में
गत जीवन की स्मृति लहराती
याद आदिकवि की है आती
देख, भारती स्वयं बुलाती
मुझे, हार ले कर में
तूने, देवि! भली दी शिक्षा
पायी मुक्ति-मंत्र की दीक्षा
सफल करूँगा लोक-प्रतीक्षा
रामचरित लिख कर, मैं
रला! अब न रुकूँगा घर में
सुनकर तेरे वचन काम-ज्वर उतर गया पल भर में