geet ratnavali
यदि मैं सपना देख रही थी,
तो फिर कैसे प्राणों में यह रस की धार बही थी!
क्यों फिर दिखे अभी मिलनोत्सुक
स्वामी इन नयनों के सम्मुख?
तनु-छवि वही, वही सुंदर मुख
दृग में दीप्ति वही थी
जो बन गयी काल मेरे हित
बेध गयी उनका कोमल चित
बता बात क्या मैंने अनुचित
उनसे भला कही थी!
ज्यों दे शलभ दीप के फेरे
नाथ जिसे रहते थे घेरे
कह दे, माँ! कपोल छू मेरे
रत्ना क्या न यही थी!
यदि मैं सपना देख रही थी,
तो फिर कैसे प्राणों में यह रस की धार बही थी!