geet vrindavan

रात यदि श्याम नहीं आये थे
मैंने इतने गीत सुहाने किसके सँग गाये थे!

गूँज रहा अब भी वंशी-स्वर
मुख-सम्मुख उड़ता पीताम्बर
किसने फिर वे रास मनोहर

वन में रचवाये थे!

शंका क्यों रहने दें मन में!
चलकर सखि! देखें मधुवन में
पथ के काँटों ने क्षण-क्षण में

आँचल उलझाये थे

मुझे याद है हरि ने छिपकर
मुग्ध दृष्टि डाली थी मुझपर
क्यों अंगों में सिहर रही भर

भेंट न यदि पाये थे!

रात यदि श्याम नहीं आये थे
मैंने इतने गीत सुहाने किसके सँग गाये थे!