bhakti ganga

कभी तो ठहरे यह मन मेरा
इस अनंत सूनेपन में कोई तो मिले बसेरा

यह नीली यवनिका चीरकर
कभी उतर भी तो तू भू पर
मुझे प्यार से बाँहों में भर

भय का मिटा अँधेरा

तू है सतत मौनव्रत साधे
फिर भी मुझसे आशा बाँधे!
श्रद्धा आधी, संशय आधे

कैसे लाँघूँ घेरा!

तार भले ही सुर में जोड़े
कभी मींड़ भी तो दे थोड़े
तानों पर ही लाकर छोड़े

मुझे राग क्यों तेरा!

कभी तो ठहरे यह मन मेरा
इस अनंत सूनेपन में कोई तो मिले बसेरा