ek chandrabimb thahra huwa
क्या मैंने तुम्हारे नाम को
हवाओं पर नहीं लहरा दिया है
कि बाग़ के पत्ते-पत्ते से वही ध्वनि निकलती है !
क्या मैंने तुम्हारे रूप को
चाँद-सा नहीं चमका दिया हैं
कि सागर की लहर-लहर उसीके लिए मचलती है !
अब भी तुम्हें मेरी निष्ठा में संदेह है!
मेरे समर्पण में शंका है!
क्या मैंने तुम्हारे प्रेम को
भगवान तक नहीं पहुँचा दिया हे
कि आरती के दीप-दीप में उसीकी लौ जलती है!