ek chandrabimb thahra huwa
न तो मैं तेरी रूप-माधुरी
कागज पर उतार पाता हूँ,
न अपने प्रेम की विकलता
शब्दों में उभार पाता हूँ,
फिर इन कविताओं का क्या प्रयोजन है!
मेरा यह समस्त वाग्विलास क्या व्यर्थ नहीं है!
सच्ची बात तो यह है,
यदि मेरी पंक्ति-पंक्ति से
तेरे प्रेम की सुगंध नहीं आती है
तो केवल कागज काले करते जाने का
कोई अर्थ नहीं है।