ret par chamakti maniyan
मैं उम्र में ‘शेक्सपियर ‘ से बड़ा हो गया हूँ,
मैं ‘प्रसाद’ के कंधों पर खड़ा हो गया हूँ,
‘शेली’, ‘कीट्स’ और ‘बायरन’
मुझे अपने छोटे भाई जैसे लगते हैं,
वे पर्वत, जिन्हें मैं आतंकित हो-होकर देखा करता था
राई जैसे लगते हैं।
परंतु अग्नि की लपटों में नहाकर
वे सभी तो देवमूर्तियों-से
इतिहास के संग्रहालय में खड़े हैं
जब कि मेरे हर कदम पर अभी प्रश्नचिह्न लगा है,
साहित्य के सभी द्वार
मेरे लिए अभी बंद पड़े हैं।
उम्र में बड़ा होने से ही
कोई बड़ा नही होता है,
बड़ा वही है
जो दूसरों के कंधों पर खड़ा नहीं होता हैं।