diya jag ko tujhse jo paya
क्या हो रत्न-विभूषण पाये!
यदि तेरी पदरज न मिले, माँ! कुल सम्मान धरा रह जाये
रहकर द्वार निकट जो तेरे
भजता तुझको साँझ-सवेरे
क्यों वह दृष्टि अन्य दिशि फेरे
लाख प्रलोभन जग दिखलाये!
मैं कृतकृत्य नये सुर पा नित
कम यह भी न कृपा मेरे हित
होकर भी सुरसरि-तट पर स्थित
क्यों कोई जल को अकुलाये!
विनय यही, न रुके स्वर-निर्झर
बनी रहे यह कृपा दास पर
आऊँ तेरे पास दौड़कर
जब तू, जननि! बाँह फैलाये
क्या हो रत्न-विभूषण पाये!
यदि तेरी पदरज न मिले, माँ! कुल सम्मान धरा रह जाये