diya jag ko tujhse jo paya
जीवन दुख से भरी कहानी
हर अक्षर आँसू इसका, हर पंक्ति व्यथा से सानी
श्रोता रहे न कहनेवाले
निष्ठुर काल सभी को खा ले
क्या यदि अक्षर काले-काले
कुछ दिन रहें निशानी
हों भी सुख-विराम-क्षण थोड़े
बिछड़ गये हंसों के जोड़े
महाशून्य में लाकर छोड़े
सदा विरह की वाणी
किससे पूछूँ, ‘सृष्टि-विधाता
क्यों फिर-फिर यह खेल रचाता?
लिख-लिखकर क्यों हमें मिटाता
श्रम करता बेमानी?
जीवन दुख से भरी कहानी
हर अक्षर आँसू इसका, हर पंक्ति व्यथा से सानी