kagaz ki naao
तुझे यह कैसी चिंता खाये!
क्या निज प्रभु के मंगलमय सन्देश न तुझ तक आये!
क्या न निरंतर निज करुणा की
दिखा रहे वे बाँकी झाँकी!
क्यों उनकी गुरुता कम आँकी
जो सुख-साधन पाये!
कागज़ पर जो ज्ञान उतारा
निष्फल है यदि उसके द्वारा
मिटे न भावी का भय सारा
यों नित काल डराये!
यदि प्रभु पर विश्वास अटल हो
क्यों चित् में यह चिंतानल हो!
वे सँग हैं, प्रतीति प्रतिपल हो
कुल विषाद मिट जाये!
तुझे यह कैसी चिंता खाये!
क्या निज प्रभु के मंगलमय सन्देश न तुझ तक आये!