kagaz ki naao
मुझे तो लड़ते ही जाना है
क्रूर काल, छलिया जग ने मिल, मुझसे रण ठाना है
जग से कभी विराम न पाया
इतनी मोहमयी है माया
कितना भी मन को समझाया
तनिक नहीं माना है
कम न काल से भी है लड़ना
संधि किये ही संभव बढ़ना
देख क्षणिक मेरा गिर पड़ना
उसने शर ताना है
पर होगी न पराजय मेरी
कितनी भी हो रात अँधेरी
जब, प्रभु! कृपादृष्टि है तेरी
फिर क्यों घबराना है!
मुझे तो लड़ते ही जाना है
क्रूर काल, छलिया जग ने मिल, मुझसे रण ठाना है