seepi rachit ret
लजालू प्रेमी
शीघ्र लजालू प्रेमी कैसे पायें अपना प्रेम दिखा
यदि न मिले प्रेमिका उन्हें जो मीठी चुटकी ले-लेकर
विविध रीतियाँ प्रेम व्यक्त करने की अनुदिन सिखा-सिखा
स्वयं बढ़े आगे लज्जा के बंधन एक किनारे धर?
जो सब गुण के पूरित, सुंदर सरल, विभव का राजकुमार,
लज्जा में लिपटा एकाकी खड़ा विश्व के कोने में,
देख रहा उससे लघु-लघु जन पाते निज इच्छित उपहार,
चिर-वंचित वह, देर न छवि की हाट बंद अब होने में।
कोई कितना भी प्रेमी कहलाने का, अधिकारी हो,
बिना जोर से चिल्लाये गुण गिनता नहीं वधिर संसार।
वह क्या करे जिसे पग-पग पर लज्जा की बीमारी हो,
अवसर खो देता हो जो अपने ही हाथों बारंबार?
तीव्र रूप का आकर्षण, हो भूल न भावाकुल मन से,
जकड़ दिया विधि ने यौवन को मृदुल लाज के बंधन से।
1941