seepi rachit ret

सपना

सपने में देखा है मैंने जावक-रचित उँगलियों को
किरणों-सी पदनख से चित्र बनाते, अवगुंठन के बीच,
दो काली आँखें, ज्यों लहरें घेरे युगल मछलियों को
नाच रही हों कमल-वदन पर आँसू की रेखायें खींच।

कच्ची धूप सदृश कोमल तन, चिकनी काली अलकों में
दीपशिखा-सी वंदन-रेखा, गौर भाल पर बिंदु अरुण
तरुण हृदय-सा, करुण प्रेम की भाषा आनत पलकों में,
गीले अधरों पर कातरता चुंबन-सी तिरती क्षण-क्षण।

मैं चिल्लाया, मेरी रानी! प्राण! अरे यह कैसा व्यंग्य,
निष्ठुर प्रेम! आह करुणामय प्रेम! प्रेम! यह सत्य नहीं,
अन्य किसी की परिणीता तुम, ये कोमल फूलों-से अंग,
यह सिंदूरी रेखा, मन को भाले-सी जो बेध रही,

यह निर्दोष, गुलाबी, कज्जल आँखों का ममतामय रंग
अन्य किसीका? पर वह छवि जाती थी दूर उदास बही।

1941