bhakti ganga
तेरा साथ नहीं छोड़ूँगा
अनजानी है दिशा जिधर ये पाँव बढे जाते हैं
पर चिंता क्या! सतत तुझे अपने समीप पाते हैं
छूट जाय संसार भले ही, मैं यह हाथ नहीं छोड़ूँगा
कितना भी मुँह फाड़ें अब ये अजगर-सदृश अँधेरे
गूँजा करते हैं प्राणों में शब्द मधुर वे तेरे
‘जो मुझ पर आश्रित हैं उनको कभी अनाथ नहीं छोड़ूँगा’
तेरा साथ नहीं छोड़ूँगा