bhakti ganga
नहीं यदि तेरा मिले सहारा
शिव शव हों, गूँगे चतुरानन, क्षीरसिन्धु हो खारा
तेरे ही इंगित से क्षण में
सृष्टि सजी यह सूनेपन में
चमक उठे नभ के प्रांगण में
अगणित रवि-शशि-तारा
तेरा ही मृदु परस निरंतर
मुझमें यह चेतना रहा भर
फूट रहे हैं नित नव-नव स्वर
इन तारों के द्वारा
जन्म-मरण का क्यों हो लेखा!
मैं तेरी शाश्वत् पद-रेखा
जब भी तुझमें निज को देखा
छूटा भय-भ्रम सारा
नहीं यदि तेरा मिले सहारा
शिव शव हों, गूँगे चतुरानन, क्षीरसिन्धु हो खारा