bhakti ganga
नाथ! क्यों डाँड़ चलाना छोड़ा?
अभी किनारा दूर बहुत था, क्यों ऐसे मुँह मोड़ा?
इसी सहारे सब दुख झेला
मैं जग में कब रहा अकेला!
क्यों आते ही संध्यावेला
प्यार रह गया थोड़ा?
रिक्त कृपा का कोष हुआ क्या?
मुझसे कोई दोष हुआ क्या?
क्यों इतना आक्रोश, हुआ क्या
जो अपना प्रण तोड़ा
उदासीन यदि इस संसृति से
आप अलग हैं अपनी कृति से
तो मेरे प्राणों की गति से
क्यों निज को था जोड़ा
नाथ! क्यों डाँड़ चलाना छोड़ा?
अभी किनारा दूर बहुत था, क्यों ऐसे मुँह मोड़ा?