bhakti ganga
पत्री मैंने भी भिजवायी
पर सादी थी जगह पते की, लौट-लौटकर आयी
गेह तुम्हारा ज्ञात नहीं था
कभी गगन में, कभी यहीं था
हरकारा ऐसा न कहीं था
पड़ता जिसे दिखायी
अगणित पत्र यहाँ से जाते
तुम तक कभी पहुँच भी पाते!
देव लिये कर्मों के खाते
देते नहीं रसाई
पर मेरी भी जिद है, जब तक
छुटे न कलम, लिखूँगा तब तक
देखूँ, नहीं करोगे कब तक
तुम मेरी सुनवायी
पत्री मैंने भी भिजवायी
पर सादी थी जगह पते की, लौट-लौटकर आयी