bhakti ganga
भगवती, आद्याशक्ति, भवानी!
ढूँढ़ थके विधि, हरि , हर, तेरी लीला किसने जानी!
अनस्तित्व था पड़ा अचेतन
महाशून्य में प्रथम नाद बन
तूने ही कर यह सम्मोहन
जग रचने की ठानी
अगणित ब्रह्मांडों को घेरे
नियम अकाट्य अड़े हैं तेरे
मिटे सृष्टि यदि तू मुँह फेरे
करने दे मनमानी
लाख कल्पनायें दौड़ाऊँ
क्या तेरी महिमा कह पाऊँ!
वर दे बस, गुण गाता जाऊँ
धन्य करूँ निज वाणी
भगवती, आद्याशक्ति, भवानी!
ढूँढ़ थके विधि, हरि , हर, तेरी लीला किसने जानी!