ghazal ganga aur uski lahren
पीनेवालों को तो, साक़ी ! तभी पीना आया
जब है प्याले में तेरा अक्स भी झीना आया
जिसने मर-मर के है औरों को ज़िंदगी दे दी
जो सच कहें तो उसी शख़्स को जीना आया
मैं ही शर्मिन्दा हुआ दरियादिली से उसकी
देनेवाले के तो मुँह पर न कभी ‘ना’ आया
नाच न देखे कोई, क्यों मोर को ग़म हो ! वह तो
ख़ुश इसी में है कि सावन का महीना आया
शौक़ यारों का जो बदला, सुरों की महफ़िल में
कौवा कोयल को हटा तान के सीना आया
इलाज़ क्या हो तेरी दाद की हसरत का, गुलाब!
तू तो बहरों में भी ले गीत की बीना आया