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भोगवादी और गांधी

मेरा मन तराजू के काँटे-सा डोल रहा है,
एक पलड़े पर भोगवादी है, एक पर गाँधी है,
मनुष्य को अपनी ओर झुकाने के लिए
दोनों ने ही कमर बाँधी है!

भोगवादी कहते हैं–
भोगों से भागों मत,
उन्हें खुली आँखों भोगो,
तभी तुम उनसे छूट पाओगे;’
गांधी कहते हैं–
‘वासना के नागफण को कुचल डालो,
त्याग द्वारा ही भोगों का सुख लूट पाओगे।’
भोगवादियों का कथन
कितना सुगम है, कितना लुभावना है!
निम्नोन्मुख वृत्तियों के कितना अनुकूल है!
प्रेय के मार्ग से श्रेय तक पहुँचा जाय,
यही तो भक्ति का भी मूल है।
परंतु ‘यदि काम के स्रोत को ऊर्ध्वगामी कर दिया जाय
तो उसकी संयोजित शक्ति से
पर्वत की चूल भी हिलती है’,
सच कहूँ तो गांधी का यह कथन
जितनी विश्वसनीयता जगाता है
भोगवाद से वह नहीं मिलती है।

गांधी ने अपने सिद्धांतों की सत्यता
अपने जीवन के द्वारा दिखा दी है,
परंतु भोगवादियों ने अँधेरे में चलने के लिए,
हमारे हाथ में केवल एक जलती हुई अग्निशिखा दी है।

1983