pankhuriyan gulab ki
नहीं ख़त्म भी हो सफ़र चलते-चलते
कभी मिल ही लेंगे मगर चलते-चलते
हटा भी लो परदा ज़रा सामने से
तुम्हें देख लें भर नज़र चलते-चलते
अभी तो बहुत दूर थी दिल की मंज़िल
रुके क्यों क़दम राह पर चलते-चलते !
कुछ ऐसी ही थी बेबसी, माफ़ कर दो
हुई चूक कोई अगर चलते-चलते
गुलाब! उनकी तुमने झलक भी न देखी
सुबह से हुई दोपहर चलते-चलते