pankhuriyan gulab ki
यादों के इस सफ़र में, हैं फिर गुलाब फूले
फिर बेकली है सर में, हैं फिर गुलाब फूले
उड़कर कहीं से चैती ख़ुशबू-सी आ रही है
क्या आपकी नज़र में हैं फिर गुलाब फूले !
हर फूल में उन्हीं की रंगत मिली है हमको
जैसे कि बाग़ भर में हैं फिर गुलाब फूले
दिल लौटता रहा है टकराके हर नज़र से
पत्थर बने शहर में, हैं फिर गुलाब फूले
बेकार लिख गये हैं ख़त में हम उनको, इतना
लिखना था मुख़्तसर में — ‘हैं फिर गुलाब फूले’