tilak kare raghuveer
गीत तो रच-रच कर लिख डाले
किन्तु भक्ति के बिना सभी हैं अक्षर काले काले
अर्थ, अलंकृति, रस अद्भुत हो
लोग कहें भी, ‘कवि बहुश्रुत हो’
पर क्या, यदि सम्मान बहुत हो
खुलें न मन के ताले!
परम प्रेम की पीर न भोगी
रो-रो मरे न प्राण वियोगी
व्यर्थ न प्रतिभा बुनती होगी
मकड़ी के-से जाले!
तूने नित नव राग उठाया
स्वर तो बेच-बेचकर खाया
कभी भाव यह मन में आया
उससे तान मिला ले!
गीत तो रच-रच कर लिख डाले
किन्तु भक्ति के बिना सभी हैं अक्षर काले काले