tilak kare raghuveer
चित्र भी यदि मिटनेवाले हैं
फिर भी व्यर्थ नहीं मैंने जो कागज रँग डाले हैं
यद्यपि कल तक जो वर माँगे
चाह रहा मन उनसे भागे
फिर भी कैसे वे भ्रम त्यागे
जो अब तक पाले हैं!
माना मैं अंधों में नाचा
बहरों ने यह सुर था जाँचा
झूठा था रसिकों का साँचा
जब मुँह पर ताले हैं
फिर भी शंका मुझे न तिल भर
रख लेगा तू उन्हें सँजोकर
मैंने जो निज प्राण निरंतर
गीतों में ढाले हैं
चित्र भी यदि मिटनेवाले हैं
फिर भी व्यर्थ नहीं मैंने जो कागज रँग डाले हैं