tilak kare raghuveer
वृथा ही तू क्यों जूझ मरे!
सदसत् के इस महाद्वंद का निर्णय कौन करे!
‘नेति-नेति’ कहकर जिससे ली हार मान मुनियों ने
पग दो पग चलकर ही चलना छोड़ दिया गुणियों ने
उस अनंत पथ पर क्यों तू निज दुर्बल पाँव धरे!
अपनी शाश्वतता का तुझको यदि विश्वास रहेगा
नहीं मरण के कालपाश का तिल भर त्रास रहेगा
चिंता क्या, यदि विश्वमंच पर नित नव स्वाँग भरे
जिसके चिर अकाट्य नियमों से जग अनुशासित होता
संभव है, वह दूर कहीं लंबी ताने हो सोता
पर उसकी अनुभूति मात्र सारे भवताप हरे
वृथा ही तू क्यों जूझ मरे!
सदसत् के इस महाद्वंद का निर्णय कौन करे!