aayu banee prastavana

किसीकी भावना में ज्वार आ जाये तो कैसा हो!
किसीको आज मुझ पर प्यार आ जाये तो कैसा हो!

तड़पता मैं अहर्निश, रूप कौ चितवन नहीं मिलती
कला मिलती, कला के प्राण की धड़कन नहीं मिलती
अजाने वर, अदेखे स्वप्न की सिहरन नहीं मिलती
तड़ित को घन न मिलते, मेघ को तड़पन नहीं मिलती

कहीं मरु तक तृषित जलधार आ जाये तो कैसा हों!

हृदय पर छा रहा है धूल का अंबार बरसों से
प्रतीक्षा में विकल हैं चेतना के तार बरसों से
नहीं आया पलटकर जो गया उस पार, बरसों से
अकेले धुन रहा है सिर उपेक्षित प्यार बरसों से

पुन: वह मधु-किरण सुकुमार आ जाये तो कैसा हो!

उसे उर से लगाकर मैं हृदय का ताप हर लूँगा
उसीके प्यार में अपना तड़पता प्यार भर दूँगा
झिझकती चितवनों पर कामना के दीप धर दूँगा
तृषाकुल प्राण में ढँककर कला में व्यक्त कर दूँगा

     पुनः मधुमास का गुंजार आ जाये तो कैसा हो!

किसीकी भावना में ज्वार आ जाये तो कैसा हो!

1965