aayu banee prastavana
आधा जीवन तो बीत गया
कितना सुंदर था, मधुमय था
उन्माद भरा चढ़ता वय था
समझा था जिसको अक्षय था
वह बीत गया, सब बीत गया, मधु का घट जैसे रीत गया
फूलों का कानन शेष हुआ
सपना, सपनों का देश हुआ
मरुथल के बीच प्रवेश हुआ
मैं जीत-जीतकर हार गया, जग हार-हारकर जीत गया
अब रूप विदा वह राग विदा
यौवन के खेले फाग, विदा
प्राणों की शीतल आग, विदा
अब विदा भविष्यत् की आशा, प्रिय अब हो मुझे अतीत गया
आधा जीवन तो बीत गया
1961