aayu banee prastavana

हृदय में बस गये मेरे, किसीके स्नेह के दो क्षण
गुलाबी सीप-सा आनन
खिले कचनार जैसा तन
सकुचते प्राण, पलकों में
अदेखी प्रीति के चुंबन
उमसती दूब पर जैसे घुमड़ते मेंह के दो क्षण

हृदय की झूमती शाखें
विहँसती सुरमई आँखें
शलभ बनकर जले,
दे दी किसीने दीप को पाँखें
सुलगते बाहु-पाशों में तड़पती देह के दो क्षण

विदा की अश्रुमय चितवन
अजाना हो चुका यौवन
पराया जो सदा को
रूप का वह शेष का दर्शन
अँधेरी रात में जैसे अपरिचित गेह के दो क्षण
हृदय में बस गये मेरे, किसीके स्नेह के दो क्षण

1954