ahalya

दृग-तारों से छलके छल-छल आँसू कज्जल
मुनि-चरणों पर झुक, कहा अहल्या ने विह्वल
मैं संकल्पित कलिका, कर में लो या दो मल
दे दिया पिता ने जिसे वही मेरा संबल
यह जीवन हाथ उसीके

‘तृण-सी समस्त सिद्धियाँ, सुखाशायें भव की
अभिलाषा मुझे न सुर-विलास, पद-गौरव की
दो चरण-शरण, प्रभु! खड़ी पुजारिन यह कब की
प्राणों ने जिसमें स्वीय पूर्णता अनुभव की
नारी तो साथ उसीके’