ahalya

निष्फलताओं में खीझभरी-सी अकुलात्ी
थी सदा अहल्या शल्या बन चुभ-सी जाती
कर खोल न पाते जैसे पर की हो थाती
बाह्यंतर में देहरी-दीप की-सी बाती
अविकार देह जलती थी

सीपी में वंदी जैसे पानी का प्रवाह
निष्फलताओं का दंशन, नीरव आत्म-दाह
स्वप्नोत्थित-सी साधना कभी उठती कराह
चुप खीजभरे-से मुनि मन की पाते न थाह
चेतना हाथ मलती थी