ahalya

वासंती संध्या, मंद पवन लेता झकोर-
चंचल किसलय, अंचल को कलियों के मरोर
शर उड़ते प्रतनु, अतनु के धनु की चढ़े डोर
नभ से जाते सुरपति ने भू की देख ओर
अंतर की शांति गँवायी

शत यरज्ञा का मूतित सर्सिद्ध, सफलता-सा
विजड़ित चपला-सी, अचपल दीपक-लतिका-सी
मुनि-पत्नी मन में बसी अजान विकलता-सी
मोती के पानी की अरुणाभ तरलता-सी
अंगों में भरे लुनाई