ahalya

पक्षी ज्यों ज्वाला-विषिख-विद्ध नभ-मंडल में
चक्कर खा गिरता हो भू की दिशि पल-पल में
विष-विकल मीन जैसे घूर्णित सागर-तल में
जीवन की शत-शत राजनीति की हलचल में
सुरपति थे उचटे रहते

आँसू की कलियाँ गूँथ दीर्घ निःश्वासों में
पहिनाते स्वप्न-प्रिया को पा भुज-पाशों में
समरांधकार-सा अमरावती-निवासों में
सुर, मुनि, किन्नर, गंधर्व, विकल रिपु-त्रासों में
थे निराधार-से बहते