ahalya

मैं कौन? कहाँ से तिर आयी हिम-कणिका-सी !
सम्मुख लहराती दृग के स्वप्न-यवनिका-सी
पितु! जननी मेरी कहाँ, नहीं स्मृति क्षणिका-सी
क्या मैं भी सुरपुर में उड़ जाऊँ गणिका-सी
देवों को, हाय! रिझाने?

“स्वर बिना सिखे ही चंचल, कर-पद नृत्योत्सुक
वह बिना दिखे ही कौन किये इंगित रुक-रुक
मैं बिना लिखे ही पढ़ती भावी लिपि झुकझुक
कसमस कंचुकी, काँपता झीना लज्जांशुक
भौंहें लगतीं बल खाने