ahalya

‘पुर, परिजन, प्रिय परिवार, बंधु, धन, धाम सही
मैं दे सकता हूँ सब कुछ लेकिन राम नहीं
मुनि गूँज रहा नस-नस में मेरे नाम वही’
नृप कह न सके आगे, पलकें अविराम बहीं
परिषद डूबी, उतरायी

पुरवासी सहमे-से बतलाये आपस में
‘जाने क्‍या होगा! देव न विष घोलें रस में’
बोले वशिष्ठ उठ-‘राजन्‌! ममता के वश में
भूले यह आप, कुमारों का हित है किसमें
कुल की मरजाद, बड़ाई