ahalya

हो गया धन्य जिसपर कौशिक ने धरा हाथ
फिर साधक राम-लखन-से जिनसे जग सनाथ
धनु-शिक्षा और परीक्षा होगी साथ-साथ
निश्चय लौटेगा मूल द्विगुण हो, कृपानाथ!
मत आप डरें कुछ जी में

एकाकी रवि लेता त्रिभुवबन का तिमिर दूह
कुसुमाकर अतनु विजित जिससे जग-जन-समूह
गज-कुंभ-विदारन सिंह-कुमारों को दुरूह!
दे राम-लखन मुनि को, तुड़वा दें असुर-व्यूह
सब विधि कल्याण इसीमें ‘