ahalya

पुरवासी पथ देते न तनिक समझाये भी
रथ के घोड़े बढ़ते ही नहीं बढ़ाये भी
कौशिक के ढहने लगे ज्ञान के पाये भी
सारथि ने पोंछे नयन अश्रु भर आये भी,
बरबस रथ हँकर, चलाया

चल पड़ी चक्र के साथ अवध की धरा धन्य
पुर, सरित, घाट, गृह, हाट, बाट, वीथिका, पन्य
शिशु, युवा, वृद्ध, निर्धन, समृद्ध नागरिक, वन्य
चल पड़े अचल, पशु-विहग-विकल, सब गति-अनन्य
नभ चला किये घन-छाया