bhakti ganga
दया यह भी कम न थी तुम्हारी
समझा मुझको भी चरणों तक आने का अधिकारी
राजसभा थी जुड़ी तुम्हारी
गायक एक-एक से भारी
जब सबने थी चुप्पी धारी
आयी मेरी बारी
मैं उनमें क्या शोभा पाता!
कुछ उल्टा-सीधा था गाता
जब भी कोई तान उठाता
हँसती परिषद् सारी
पर आश्चर्य , गीत सुन मेरा
तुमने हाथ पीठ पर फेरा
पल में लाँघ सभा का घेरा
उमड़ पड़े नर-नारी
दया यह भी कम न थी तुम्हारी
समझा मुझको भी चरणों तक आने का अधिकारी