bhakti ganga

नहीं भी इस तट पर आयेंगे
पर क्या महासिंधु में कोई और न तट पायेंगे?

रज तो रज में मिल जायेगी
पर यदि नींद नहीं आयेगी
लहर न जिन्हें पचा पायेगी

   प्राण कहाँ जायेंगे?

चढ़कर महाकाल के रथ पर
लेंगे बस विश्राम घड़ी भर
हम तो फिर इस जग में आकर

तेरे गुण गायेंगे

छूटेगा जो आज अधूरा
कल वह गीत करेंगे पूरा
फिर से पाकर नव तम्बूरा

   नव रस बरसायेंगे

नहीं भी इस तट पर आयेंगे
पर क्या महासिंधु में कोई और न तट पायेंगे?