bhakti ganga
नहीं यदि तू भी दया करेगा
तो फिर इस जलते जीवन की पीड़ा कौन हरेगा!
काम-क्रोध-मद-लोभ-मोह हैं प्रतिपद घेरा डाले
मुझको भटकाने के तूने कितने मार्ग निकाले
सहज स्वभाव यही शिशु का तो, तिरछे पाँव धरेगा
इंद्र-कुबेर-मरुत-पावक-जल तेरे जड़ अनुचर हैं
भले-बुरे के ज्ञान-रहित, नियमों के पालक भर हैं
इनका बस चलते तो कोई पापी नहीं तरेगा
तेरी क्षमा बड़ी है मेरे कर्मों के बंधन से
शाप-ताप सब धुल जायेंगे अश्रु-सजल आनन से
जब तू मेरा क्रंदन सुनकर धरती पर उतरेगा
नहीं यदि तू भी दया करेगा
तो फिर इस जलते जीवन की पीड़ा कौन हरेगा!