bhakti ganga

नहीं यदि तेरा ही मन माने
तो फिर क्यों जग को तू अपने दुख का कारण जाने

संशय के पलने पर झूला
सपनों की नगरी में भूला
फिरा सदा क्यों फूला-फूला

बुनता ताने-बाने?

झोंके कठिन काल के आये
पाँव भले ही ठहर न पाये
फिर भी क्यों नित रास रचाये

तेरी भावुकता ने?

मन के पीछे चल देता क्यों?
तू विषयों में रस लेता क्यों?
निकला तृण-तरणी खेता क्यों

लहरों से टकराने?

नहीं यदि तेरा ही मन माने
तो फिर क्यों जग को तू अपने दुख का कारण जाने