bhakti ganga
प्रेम की पीड़ा पल न भुलाऊँ
एक-एक पल पर सौ-सौ जीवन की भेंट चढ़ाऊँ
जग के गहन तिमिरमय पथपर
तू चलता हो साथ निरंतर
पर न फटे यदि दुख से अंतर
कभी झलक भी पाऊँ!
व्रत, संयम, विज्ञान, बुद्धिबल
जप, तप, ज्ञान, ध्यान सब निष्फल
पाये बिना प्रेम का संबल
चक्कर व्यर्थ लगाऊँ
जीवन भर है आपाधापी
मन तो रहा सदा ही पापी
संभव है, मैं यही सुरा पी
कभी तुझे पा जाऊँ
प्रेम की पीड़ा पल न भुलाऊँ
एक-एक पल पर सौ-सौ जीवन की भेंट चढ़ाऊँ