bhakti ganga

भय से दो त्राण
भीरुता, विकलता से मुक्त करो प्राण

शाश्वत, चिन्मय, अक्षय
जीवन को किसका भय!
दूर करो, करुणामय!

मन का अज्ञान

मुझको जो प्यारे हैं
अधिक उस किनारे हैं
जो हैं यहाँ, सारे हैं

      सँग-सँग गतिवान

संशय,भय छिन्न करो
मन का संताप हरो
मस्तक पर हाथ धरो

हे पिता महान!

भय से दो त्राण
भीरुता, विकलता से मुक्त करो प्राण