bhakti ganga
भरोसा है तेरे ही बल का
और नहीं तो भला ठिकाना यहाँ एक भी पल का
यदि तुझपर विश्वास न लाऊँ
बस दिन रात दौड़ता जाऊँ
एक बूँद भी क्या चख पाऊँ
जल मैं इस मृगजल का
इस संसृति के रंगमंच पर
फिरूँ घड़ी भर नाच-कूदकर
यदि जीवन हो जी लेना भर
फल क्या चारों फल का
प्रतिबिंबित तेरी छवि द्वारा
शाश्वत् रसमय है यह धारा
है न सुयोजित जग यह सारा
स्वप्न किसी पागल का
भरोसा है तेरे ही बल का
और नहीं तो भला ठिकाना यहाँ एक भी पल का