bhakti ganga
मन रे! डाँड़ न छूटे कर से
अबकी झोंके में पानी ऊपर आयेगा सर से
इधर अँधेरा, उधर अँधेरा
देख अपार शून्य का घेरा
साहस तनिक न कम हो तेरा
खो जाने के डर से
अपने सभी दाँव जब हारे
तंत्र-मंत्र हों झूठे सारे
रहना श्रद्धा-रज्जू सँवारे
लड़ते हुए भँवर से
जिसकी ज्योति-किरण तू अक्षय
खड़ा पीठ पर वह करुणामय
तुझे खींच ही लेगा निश्चय
लहरों के अन्दर से
मन रे! डाँड़ न छूटे कर से
अबकी झोंके में पानी ऊपर आयेगा सर से